Sunday, April 7, 2019

इश्क़..

इश्क़ में वक़्त का हिसाब ना रखा कीजिए बेरखुरदार
आप जितना वक़्त खरीदोगे उतना ही कम पड़ेगा..
इश्क़ वक़्त नहीं बल्कि समुंदर लाता है संग अपने
जिसकी गहराई बस आंखों से ही बयान हो जाती है
और सादगी ऐसी की मुस्कुराहट भी लज्जा जाए..

- गुन्जन

इस उलझी सी दुनिया में..

इस उलझी सी दुनिया में 
सुलझा सा सिर्फ एक रिश्ता
क्या मुमकिन है?

क्या चार दिवारी में
इन्ही उलझनों में रहना 
इतना लाज़मी है?

काश तुम समझ पाते
हमारी दुनिया में
उलझनों के लिए जगह नहीं।

काश ये जान पाते
बातों को परेशानियों का मोड़ देना
कितना आसान होता है।

काश मैं समझा पाती
बगैर आइने के भी
ज़िन्दगी खूबसूरत लगती है।।


- गुन्जन

अब भी लिखा करती हो?

कुछ लोग जब कई सालों बाद मिलते हैं
अक्सर पूछा करते हैं
अब भी लिखा करती हो?
मेरा जवाब यूं तो _नहीं_ होता है
फिर वो कारण भी पूछते हैं
मैं _वक़्त_ को दोषी ठहरा देती हूं
फिर कई अलग सवाल
मैं विराम लगा दिया करती हुं..
पर कुछ अनकहा सा रह जाता है
लिखती तो मैं हर रोज़ ही हुं
बस कुछ ही बातें लफ्जो में ढलती हैं
बाकियों का ठिकाना मेरे मन के करीब है।

- गुन्जन

वो रात बड़े इंतज़ार में निकाली हमने ..

वो रात इंतज़ार में निकाली हमने
जो बिखर रही थी पैरों में
सर्द हवाओं के झोंखों सी
जब निगाहें दम तोड रही थी
पर दिल बेचैन सा ढूंढता था तुम्हें

तकिए पर करवटें ले रहा था सुकून
जो बिखरा था बाहों में तुम्हारी
सीने पर सर रखकर धड़कनों को सुनते हुए
जब नींद की आगोश में न जाने कब सुबह हो जाती थी

तड़प कर उस रात चांद भी रोया होगा
बदलियों ने जब अलविदा कहा था बरस कर कहीं
जज्बात की बेचिनियों ने जगाए रखा सारी रात
सोचते रहे क्या तुमको सुनाई देती हैं इन सांसों की सिसकियां
वो रात बड़े इंतज़ार में निकाली हमने

- Shwetima

Happy Holi...

खुशी से झूमता हुआ वो बचपन याद है?
जब हसीं गूंजती थी आंगन में शरारती थीठोलियों की
और इंतज़ार रहता था exams के ख़तम होने का
जब मा प्यार से गुझिया और दही बड़े बनाती थी
और हम चुपके से एक दो ऐसे ही आते जाते खा जाया करते थे..

वो रंगो की खुशबू उड़ती रहती थी हवाओं में
एक नहीं हमारी तो चार दिन होली चला करती थी
और जब मम्मी डांटती थी कपड़े खराब होने से
हम निकल लिया करते थे बच कर किनारे से

दोस्तों के घर जाते थे हांथों में काला रंग लेकर
पानी के भरे हुए गुब्बारों से सने हुए सड़े हुए
बेफिक्री ओढ़कर मस्ती की टोलियों में खो जाते थे
मुट्ठियों में खुशी लिए घूमा करते थे

कभी वापस आ जाए वो दिन वो जश्न
जो दोस्तों के दरमियान फैले हुए हैं
ज़रा सा बटोर के ले आएं हम फिर से वो पल
और भरदें उन हसी के फूलों को इन आंगन में
काश लौट आए बाबुल के घर बिताए वो रात दिन
जहां सुकून के हाथ हो और मा की मुस्कुराहट


- Shwetima