कुछ लोग जब कई सालों बाद मिलते हैं
अक्सर पूछा करते हैं
अब भी लिखा करती हो?
मेरा जवाब यूं तो _नहीं_ होता है
फिर वो कारण भी पूछते हैं
मैं _वक़्त_ को दोषी ठहरा देती हूं
फिर कई अलग सवाल
मैं विराम लगा दिया करती हुं..
पर कुछ अनकहा सा रह जाता है
लिखती तो मैं हर रोज़ ही हुं
बस कुछ ही बातें लफ्जो में ढलती हैं
बाकियों का ठिकाना मेरे मन के करीब है।
- गुन्जन
अक्सर पूछा करते हैं
अब भी लिखा करती हो?
मेरा जवाब यूं तो _नहीं_ होता है
फिर वो कारण भी पूछते हैं
मैं _वक़्त_ को दोषी ठहरा देती हूं
फिर कई अलग सवाल
मैं विराम लगा दिया करती हुं..
पर कुछ अनकहा सा रह जाता है
लिखती तो मैं हर रोज़ ही हुं
बस कुछ ही बातें लफ्जो में ढलती हैं
बाकियों का ठिकाना मेरे मन के करीब है।
- गुन्जन
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