खुशी से झूमता हुआ वो बचपन याद है?
जब हसीं गूंजती थी आंगन में शरारती थीठोलियों की
और इंतज़ार रहता था exams के ख़तम होने का
जब मा प्यार से गुझिया और दही बड़े बनाती थी
और हम चुपके से एक दो ऐसे ही आते जाते खा जाया करते थे..
वो रंगो की खुशबू उड़ती रहती थी हवाओं में
एक नहीं हमारी तो चार दिन होली चला करती थी
और जब मम्मी डांटती थी कपड़े खराब होने से
हम निकल लिया करते थे बच कर किनारे से
दोस्तों के घर जाते थे हांथों में काला रंग लेकर
पानी के भरे हुए गुब्बारों से सने हुए सड़े हुए
बेफिक्री ओढ़कर मस्ती की टोलियों में खो जाते थे
मुट्ठियों में खुशी लिए घूमा करते थे
कभी वापस आ जाए वो दिन वो जश्न
जो दोस्तों के दरमियान फैले हुए हैं
ज़रा सा बटोर के ले आएं हम फिर से वो पल
और भरदें उन हसी के फूलों को इन आंगन में
काश लौट आए बाबुल के घर बिताए वो रात दिन
जहां सुकून के हाथ हो और मा की मुस्कुराहट
- Shwetima
जब हसीं गूंजती थी आंगन में शरारती थीठोलियों की
और इंतज़ार रहता था exams के ख़तम होने का
जब मा प्यार से गुझिया और दही बड़े बनाती थी
और हम चुपके से एक दो ऐसे ही आते जाते खा जाया करते थे..
वो रंगो की खुशबू उड़ती रहती थी हवाओं में
एक नहीं हमारी तो चार दिन होली चला करती थी
और जब मम्मी डांटती थी कपड़े खराब होने से
हम निकल लिया करते थे बच कर किनारे से
दोस्तों के घर जाते थे हांथों में काला रंग लेकर
पानी के भरे हुए गुब्बारों से सने हुए सड़े हुए
बेफिक्री ओढ़कर मस्ती की टोलियों में खो जाते थे
मुट्ठियों में खुशी लिए घूमा करते थे
कभी वापस आ जाए वो दिन वो जश्न
जो दोस्तों के दरमियान फैले हुए हैं
ज़रा सा बटोर के ले आएं हम फिर से वो पल
और भरदें उन हसी के फूलों को इन आंगन में
काश लौट आए बाबुल के घर बिताए वो रात दिन
जहां सुकून के हाथ हो और मा की मुस्कुराहट
- Shwetima
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