वो रात इंतज़ार में निकाली हमने
जो बिखर रही थी पैरों में
सर्द हवाओं के झोंखों सी
जब निगाहें दम तोड रही थी
पर दिल बेचैन सा ढूंढता था तुम्हें
तकिए पर करवटें ले रहा था सुकून
जो बिखरा था बाहों में तुम्हारी
सीने पर सर रखकर धड़कनों को सुनते हुए
जब नींद की आगोश में न जाने कब सुबह हो जाती थी
तड़प कर उस रात चांद भी रोया होगा
बदलियों ने जब अलविदा कहा था बरस कर कहीं
जज्बात की बेचिनियों ने जगाए रखा सारी रात
सोचते रहे क्या तुमको सुनाई देती हैं इन सांसों की सिसकियां
वो रात बड़े इंतज़ार में निकाली हमने
- Shwetima
जो बिखर रही थी पैरों में
सर्द हवाओं के झोंखों सी
जब निगाहें दम तोड रही थी
पर दिल बेचैन सा ढूंढता था तुम्हें
तकिए पर करवटें ले रहा था सुकून
जो बिखरा था बाहों में तुम्हारी
सीने पर सर रखकर धड़कनों को सुनते हुए
जब नींद की आगोश में न जाने कब सुबह हो जाती थी
तड़प कर उस रात चांद भी रोया होगा
बदलियों ने जब अलविदा कहा था बरस कर कहीं
जज्बात की बेचिनियों ने जगाए रखा सारी रात
सोचते रहे क्या तुमको सुनाई देती हैं इन सांसों की सिसकियां
वो रात बड़े इंतज़ार में निकाली हमने
- Shwetima
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