Tuesday, September 22, 2015

सोचा न था !!


ये फ़िक्र के साये 
ज़िन्दगी को इस क़दर 
आधा कर देंगे 
कभी सोचा न था 
यूँ हरदम 
धुप का चश्मा 
लगाये फिरते हैं
दिल ओ दिमाग से 
ये ओझल नहीं होंगे 
कभी सोचा ना था 
एक पल जो जुदा हो 
तो कुछ लम्हे 
जी लूँ मैं भी 
वरना यूँ ता-उम्र 
घुट घुट के रहना होगा  
कभी सोचा न था 


                                       गुन्जन 

Friday, September 18, 2015

शुरुआत


एक नयी सुबह की सेहर अब खिल चली है
शायद ज़िन्दगी अब नयी करवट ले चली है
फूल खिलते हैं रोज़ बागों में
खुशबू पर अब ज़हन में बस चली है

कामयाब नहीं हुए अभी भी हम लेकिन
सपनों की दुनिया कुछ बदल सी चली है
उम्मीदें कुछ टूटी सी कुछ छूटी सी हैं लेकिन
खुशियों की दस्तक लबों पर हो चली है

सफ़र खत्म हो चूका था मंजिलों से दूर
निगाह नए काफिलों में बढ़ चली है
सारा सामान बटोरा समेटा बिखरा हुआ जब
ज़िन्दगी से दुबारा मोहब्बत हो चली है

                                              -- श्वेतिमा

Saturday, September 5, 2015

सपना


आज सुबह जब आँख खुली
तो चेहरा एक उमने समाया था
शिकायत नही थी कोई अभी तक
बस जाने क्यूँ तुमने इतना इंतज़ार करवाया था

सपने देखे थे कभी जो सुहाने
टूट कर बिखर गए थे हमारे
फिर क्यूँ आज दस्तक देकर नींद को
तुमने समेटे वो टुकड़े सारे

दीवार पर लगी उस तस्वीर को
आज भी सजा रखा था वहीँ
बस कुछ धूल जम गई थी उसपर
याद ताज़ा कर गई ज़रा साफ़ करने पर जो

कुछ रिश्ते जो कभी टूट गए
आज कुछ अजनबियों ने जोड़ दिए
आज भी जब देखलीं ऑंखें तुम्हारी
क्यूँ मायूसी एक हंसी में बदल गयी

आज सुबह जब आँख खुली
सपना तुम्हारा ही आया था
जोड़कर सभी बातें अधूरी
क्यूँ तुमने यूँ प्यार जताया था...

                                -- श्वेतिमा


Tuesday, September 1, 2015

एक सुबह


एक उजली सी सर्द सुबह में
हमने उन प्यारी मुस्कानों को पाया है
जहाँ सेहर के कम्बल ओढ़े, मूंदी आँखों से
धीमे धीमे कानो में हवा के झोंकों से
चिड़ियों ने एक गीत सुनाया है...
                                            -श्वेतिमा

नाराज़गी


आज वो बहुत रूठी है हमसे

वो, नज़र भर देखा करती थी जो
पीठ पर थपकियाँ देती थी जो
रोज़ चंद घड़ियों में ख़ुशी ढूंड लाती थी जो

आज कुछ नाराज़ सी है हमसे

अब जब बैठे ही हैं मनाने उसे
मोतियों की तरह पिरोते थे जिसे
शब्द नही सूझ रहे सजाने को

नयी स्याही होगीे वादे किये कुछ ऐसे
पिछले रंग की निशान मिटा भी नही पाए
खाली पन्नो को अब ताकते हुए
कलम जो यह रूठी, तो अब मनाये कैसे...

                                 -- श्वेतिमा