Friday, September 18, 2015

शुरुआत


एक नयी सुबह की सेहर अब खिल चली है
शायद ज़िन्दगी अब नयी करवट ले चली है
फूल खिलते हैं रोज़ बागों में
खुशबू पर अब ज़हन में बस चली है

कामयाब नहीं हुए अभी भी हम लेकिन
सपनों की दुनिया कुछ बदल सी चली है
उम्मीदें कुछ टूटी सी कुछ छूटी सी हैं लेकिन
खुशियों की दस्तक लबों पर हो चली है

सफ़र खत्म हो चूका था मंजिलों से दूर
निगाह नए काफिलों में बढ़ चली है
सारा सामान बटोरा समेटा बिखरा हुआ जब
ज़िन्दगी से दुबारा मोहब्बत हो चली है

                                              -- श्वेतिमा

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