Saturday, September 5, 2015

सपना


आज सुबह जब आँख खुली
तो चेहरा एक उमने समाया था
शिकायत नही थी कोई अभी तक
बस जाने क्यूँ तुमने इतना इंतज़ार करवाया था

सपने देखे थे कभी जो सुहाने
टूट कर बिखर गए थे हमारे
फिर क्यूँ आज दस्तक देकर नींद को
तुमने समेटे वो टुकड़े सारे

दीवार पर लगी उस तस्वीर को
आज भी सजा रखा था वहीँ
बस कुछ धूल जम गई थी उसपर
याद ताज़ा कर गई ज़रा साफ़ करने पर जो

कुछ रिश्ते जो कभी टूट गए
आज कुछ अजनबियों ने जोड़ दिए
आज भी जब देखलीं ऑंखें तुम्हारी
क्यूँ मायूसी एक हंसी में बदल गयी

आज सुबह जब आँख खुली
सपना तुम्हारा ही आया था
जोड़कर सभी बातें अधूरी
क्यूँ तुमने यूँ प्यार जताया था...

                                -- श्वेतिमा


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