Saturday, August 1, 2015

दर्द


ज़माना अकसर ये पूछता है हम से 
क्यों ताल्लुक है तुम्हारा इसतरह दर्द से 
इसकदर मदहोशी क्यों छाई है 
क्यों धुंदली सी चादर आँखों में समाई है 

उन्हें जवाब नही दे पाते , बस कह देते हैं 
जो बेइन्तेहाई का सैलाब दिलभरकर रखा है 
उसके ही कुछ छींटे हैं 
जो अक्सर रूह को भिगो जाते हैं 

                                                   -- श्वेतिमा 

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