चलो चलें आज
डालकर झूलें उन ठंडी छाँव में
जहाँ कोयल गाती है मीठा सा
रस घोलकर आमों के बागों में
चलो चलें आज
उन पतली सुखी पगडंडियों पर
जहाँ बिछी है ज़मीन पर पीली चादर
और मोर नाचे खलिहानों में थिरक कर
चलो चलें आज
उन दोपहर की गरम हवाओँ में
जहाँ कूदते उछलते पहुंच चले
गाँव के उन शांत गलियारों में
चलो चलें आज
काली गहरी रात की आखिरी लकीर पर
जहाँ सुबह की अँखियों से
देखें लाल सूरज उन ओस की बूंदों पर
चलो चलें आज, चलो चलें आज...
-- श्वेतिमा
Sorry yaar mai isko chura rahi hu
ReplyDelete