वो ज़ालिम मुह फेर लेते हैं
अनजान बनते हैं ,
चाहते हैं वो भी बहुत
पर आँखें बंद कर लेते हैं
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तुम्हारी ये नज़ाकत
दिल बहार कर जाती है
साँसे तुम्हारी जब छुटती हैं तो साज़ बन जाती हैं,
मोतियों सी चमकती तुम्हारी ये ऑंखें
झुकें तो हया और उठे तो जहान बन जाती हैं
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इस नज़ाकत से भरी सरगोशियों की अदा क्या खूब है
तेरी नज़रों की हया में छुपी ताज़गी की फ़िज़ा क्या खूब है
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एक मुस्कराहट ऐसी है
जो हलका करदे सारी ज़मीन
जो दीदार हो जाये थकी आँखों से,
तो बन जाए ज़िन्दगी वहीँ
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अब जो बिछड़े थे
सोचा ना था वो लौटकर नही आएंगे
हम तो आज भी ऑंखें बिछाये बैठे हैं राहों पर
जानते हैं, मंज़िलों पर हम उन्हे न पाएंगे
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-- श्वेतिमा
अनजान बनते हैं ,
चाहते हैं वो भी बहुत
पर आँखें बंद कर लेते हैं
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तुम्हारी ये नज़ाकत
दिल बहार कर जाती है
साँसे तुम्हारी जब छुटती हैं तो साज़ बन जाती हैं,
मोतियों सी चमकती तुम्हारी ये ऑंखें
झुकें तो हया और उठे तो जहान बन जाती हैं
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इस नज़ाकत से भरी सरगोशियों की अदा क्या खूब है
तेरी नज़रों की हया में छुपी ताज़गी की फ़िज़ा क्या खूब है
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एक मुस्कराहट ऐसी है
जो हलका करदे सारी ज़मीन
जो दीदार हो जाये थकी आँखों से,
तो बन जाए ज़िन्दगी वहीँ
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अब जो बिछड़े थे
सोचा ना था वो लौटकर नही आएंगे
हम तो आज भी ऑंखें बिछाये बैठे हैं राहों पर
जानते हैं, मंज़िलों पर हम उन्हे न पाएंगे
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-- श्वेतिमा
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