आजकल बहुत बदला है कुछ
पहले जो आदत थी खूब बांटने की …
नहीं रहती पास अब मेरे
क्या बांटने से खत्म हो गयी,
या कहीं खो गयी मुझसे ,
बहुत की कोशिश पर मिली नही वहां ,
जहाँ आखिरी बार मिले थे उससे…
कुछ पुरानी तसवीरें याद दिलातीं हैं सबूत
कहीं छोड़ तो नही आये उस पुराने रास्ते क दरख़्त पर
सबसे मिलते थे पहन कर जिसे,
क्यों अब सिल नहीं पाते दुबारा वो किस्से …
किसी ने टोका नही अभी तक ,
शायद अब दोस्त भी बदल लिए
पुरानी हवेली जाएंगे तो सब शोर मचाएंगे ,
कहाँ लूटा आये हो ये दौलत
बता देंगे उन्हें अपनी ये उलझन, वो तो जिगर हैं हमारे
जो मुस्कुरा रहें हैं अभी भी, उम्मीद है हंस भी लेंगे कभी …
-- श्वेतिमा
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