Khamoshiyon ki beech yaaron ki sargoshiyan, masroofiyat se nikaal ke laai hain shairiyan...
Friday, July 3, 2015
नज़रें करम..
एक नक़्श उभरा था, आँखों में उतारा था, कुछ उसको सँवारा था, फिर काग़ज़ पे उतारा था!
ये ना कभी सोचा था, युँ नज़रें करम होंगी, अलफ़ाज़ हमारे भी, दुनिया की नज़र होगी! -हुमा
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