आ बैठें चल करलें ज़िन्दगी की गुफ़्तगू दो-चार,
वक़्त कहीं ज़ाया ना हो जाए यूँ ही ज़ार-ज़ार,
यूँ तो एक उम्र ही कम है किस्से बयां करने को,
कुछ एक किस्सों से मगर आज आग़ाज़ हो जाए,
ज़िक्र जब हो ही चला है कुछ आम-ख़ास किस्सों का,
चल आज कुछ तेरी-मेरी कैफ़ियत भी आम हो जाए,
हर एक शख्स के तमाम किस्सों में,
ज़िन्दगी
के
फलसफे बयां हो जाएं....
-ज्योत्सना
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