Khamoshiyon ki beech yaaron ki sargoshiyan, masroofiyat se nikaal ke laai hain shairiyan...
Saturday, July 11, 2015
तब्दीली
रोज़ बदलती ज़िन्दगी में हम कुछ यूँ उलझ गए की आज का खुशनुमा समां हम महसूस भी न कर सके… जिस के सहारे हम रोशन किया करते थे अपनी भुझ्ती रातें, आज उन्ही को पलकों से ओझल किये हम आगे बढ़ चले… --- श्वेतिमा
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