फ़िज़ा ने कहा मैं साथ ले आई हुँ
कुछ खुशबुएँ कुछ रंग-इ-ख्वाहिशें,
फ़ितरत नहीं मेरी रुकने की
रुक ना सकूँगी इसलिए!
मुझसे ना कहना कि फितरत बदल दूँ मैं,
ना ठहरना ही तो आदत है मेरी!
कुछ रेत के कतरे भी साथ उड़ा लाई हुँ,
उनकी हमसफ़र बनके यहाँ तक आई हुँ!
कभी ख़ामोश हुँ मैं, कभी थोड़ी सी हुँ आवाज़,
खुशनुमा हुँ कभी, और हुँ कभी तूफ़ान का आग़ाज़!
कभी बेघर हुँ ऐसा है मुझे एहसास,
और कभी लगता है आशियाना ये पूरा जहान!
-ज्योत्सना
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