कुछ कम कुछ ज़्यादा
थोड़ा इंतेज़ार
थोड़ा तुमसे मिलने का इरादा,
कुछ इस क़दर पकड़ लिया है ज़िन्दगी ने,
मेरा वजूद रह गया आधा-आधा!
अब हाल ये है की जी रहे हैं,
तुम्हें सुन रहे हैं और ज़खम सीं रहें हैं,
इंतेज़ार है कि लौट के आएं वापस,
बस गिन-गिन लमहे बेबसी के घूंठ पी रहें हैं!
-हुमा
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