Friday, July 3, 2015

इन्तेहाँ हो गई इंतेज़ार की..



कुछ कम कुछ ज़्यादा 
थोड़ा इंतेज़ार 
थोड़ा तुमसे मिलने का इरादा,

कुछ इस क़दर पकड़ लिया है ज़िन्दगी ने,
मेरा वजूद रह गया आधा-आधा!


अब हाल ये है की जी रहे हैं,
तुम्हें सुन रहे हैं और ज़खम सीं रहें हैं,
इंतेज़ार है कि लौट के आएं वापस,
बस गिन-गिन लमहे बेबसी के घूंठ पी रहें हैं!


                  -हुमा 


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