ज़िन्दगी की आंच पर हमने कईं आसूं सकें हैं ,
तुम्हे मांगने की आरज़ू में कईं सिक्के तालाब में फेंके हैं
दोनों हाथ उठाकर हमें दुआओं में तुम्हारी मुस्काने मांगी हैं ,
शायद अपने गम की ख़ुशी में ही उमने अपने वजूद की सच्चाई जानी है.
-- श्वेतिमा