Tuesday, June 30, 2015

तुम.…

ज़िन्दगी की आंच पर हमने कईं आसूं सकें हैं ,
तुम्हे मांगने की आरज़ू में कईं सिक्के तालाब में फेंके हैं 

दोनों हाथ उठाकर हमें दुआओं में तुम्हारी मुस्काने मांगी हैं ,
शायद अपने गम की ख़ुशी में ही उमने अपने वजूद की सच्चाई जानी है. 


                                                                                                  -- श्वेतिमा 

उम्मीद


उस पार कुछ नही बचा, एक घर था जो लहरों ने तोड़ दिया 
इस पार खड़ी होती हूँ तो अकेला सा पाती हूँ 

जाने कहाँ जाएगी कश्ती , अब ये सोचती हूँ… 

ख़ुदा से मिलकर अब कहाँ दिल आएगा……
जाने किस ओर निकल पड़ी हुँ. 

                                             -- श्वेतिमा 


ज़िन्दगी


बचपन की बातें अब किस्से कहानियां सी लगती हैं … 
… कभी कभी सोचती हूँ 
हर दिन पलटतेह ज़िन्दगी के पन्ने , एक किताब सी बनती है 

बहुत कुछ है बताने को , बहुत यादें सिमटती हैं इसमें 
कोई हमराही नही होता लेकिन ,
साथ जताने को.... 

                                                              -- श्वेतिमा 


सुन ऐ वक़्त..



सुन ऐ वक़्त!
तुझे ख़र्च करलूँ?
थोड़ा अपने लिए, कुछ अपनों के लिए..

मशरूफ़ियत का दामन,
भला कब तक रहेगा पकड़े..
तुझे रोक दूँ?
थोड़ा अपने लिए, कुछ अपनों के लिए..


                                   - गुन्जन 


Sunday, June 28, 2015

मौसम


सौन्दी सौन्दी गीली मिटटी की खुशबु है 
पत्तियों में भीगे योवन की मुस्कराहट 
पानी में बनते बुलबुलें 
और टपकती बूदों की साज़..... 

बादलों को चीरती ये बिजलियों की गरगराहट 

और इन ठंडी हवाओं की प्यारी थपकियाँ 
आज सब छोड़ कर ऐ रही,
चल जियें वो बचपन के सारे जज़्बात.....

                                               -- श्वेतिमा 

मोह्हबत के अफ़साने....



हम वो नहीं थे जो बन गए इन कातिल नज़रों के ईशारों में
बातें करती हैं पलकें तुम्हारी अल्फ़ाज़ों की ख़ामोशी में.…
देखते ही जब दिल ने चुन लिया था तुम्हे हज़ारों में
ऐ काश ! बस तभी थम जाते, उलझे नही होते यूँ जज़बातों में.…

===============================================

मोह्हबत नही, हम तुमसे नफरत की फ़रियाद करते हैं ……
कुछ इसी बहाने से , वो हमें याद तो करते हैं

===============================================

हर शायर मोह्हबत का मारा नही होता ,
ये तो ज़ालिम दुनिया है.… जिसने इश्क़ को बदनाम किया हुआ है

===============================================

आँखें बंद करने से तुम सच्चाई झुटला नही सकते ,
तकदीर का लिखा वक़्त से कभी चुरा नही  सकते …
चाहे जितना घिस लो इन हाथों को पत्थरों से ,
लकीरों के निशान कभी मिटा नही सकते....


                                                         -- श्वेतिमा 

Wednesday, June 24, 2015

नया सवेरा....



सुबह सुबह सूरज की किरणें जब खिड़की से आती हैं
हर एक जीवन मे वो प्रतिदिन नया सवेरा लाती हैं

वही पेड़ हैं वही हैं पौधे वही विहग और पक्षी हैं
उनमें प्रतिदिन नयी ऊर्जा का संचार कराती हैं

सुबह सवेरे चीर अँधेरा रात को फिर से सुलाती हैं
क्षण भर भी जो रही निराशा उसको भी ये मिटाती हैं

आशा से परिपूर्ण दीप ये फिर से हृदय में जलाती हैं
सुबह सवेरे सूरज की किरणें नया सवेरा लाती हैं

इन किरणों की उज्जवलता से मन हर्षित हो जाता है
नये लक्ष्य तय करने को मन में विश्वास जगाती हैं
इसी विश्वास को लक्ष्य जीतने का आधार बनाती हैं

इसी तरह सूरज की किरणें नया सवेरा लाती हैं




                                                         - ज्योत्सना 

Monday, June 22, 2015

ख़ुशी हुँ मैं..



जुदा-जुदा से अंदाज़ में,
हर किसी के एहसास में,
ज़िन्दा हुँ मैं,
ख़ुशी हुँ मैं!

लबों पे मुस्कान कभी,
आँखों से बूँदें बनके,
छलकती हुँ मैं,
ख़ुशी हुँ मैं!

हर दुआ में,
ज़िन्दगी के हर सफर में,
साथ चलती हुँ मैं,
ख़ुशी हुँ मैं!

कभी दिल में बसती हुँ,
बनके मुसकान कभी होंठों पे खिलती हुँ,
हर किसी की हसरत हुँ मैं,
ख़ुशी हुँ मैं!

ना है कहीं आशियाना मेरा,
ना कोई ठिकाना मेरा,
प्यार के एहसास में मिलुंगी मैं,
ख़ुशी हुँ मैं!


                - गुन्जन 



यादों की चादर तले..


यादों की चादर तले,
एक प्यारा सा ख़्वाब दिखे,
ओढ़ के ख़्वाहिशों की चादर,
चलो चाँद की सीढ़ी चढ़ें!


खुशियों का थामे हाथ,
सूरज से चलो आज मिले,
किरनों से उसकी लिपटकर,
आहिस्ते से बातें करें!



          - गुन्जन, श्वेतिमा 



Sunday, June 21, 2015

अभी थोड़ा मरने दो..



ना करो इकरार-इ-इश्क़,
कि अभी थोड़ा मरने दो,
इन लमहों के चादर तले,
इंतज़ार थोड़ा करने दो!


युँ जला के चिराग यहाँ,

ख़ुशियाँ भरके दामन में मेरे,
आरज़ू की आग़ोश में मुझे,
थोड़ा और रहने दो!


              -गुन्जन 




Friday, June 19, 2015

Random..


बड़ी मुद्दत बाद ये ख़्वाहिश जगी है,
कि दिल में तेरे बस पनाह मिल जाए,
यूँ तो तरसे हज़ारों आशिक़,
मुझे बस तेरी एक नज़र मिल जाए!

=====

खुशनसीब होते हैं वो,
जिन्हें इश्क़ होता है,
वरना ज़िन्दगी में हर क़दम पे,
हमने तो देखा बस धोखा है,

=====

बे-वजह हमे यूँ ना हसाओ,
कहदो कि इश्क़ है तुम्हे,
यूँ छुप-छुप के मिलने से,
हमने तुम्हे कब रोका है?

=====

                                   -गुन्जन


Thursday, June 18, 2015

आज़माइशें....



आज़माइशें भी कुछ मुस्कुरा के यूँ कह चलीं
के इस चट्टान को ना हम अब आज़माएंगे

कुछ असर ही ऐसा है दुआओं में इसकी
मुसलसल हम इरादों से इसीके हार जायेंगे।


ज्योत्सना 

मोहब्बत वो ज़हर है...



मोहब्बत वो ज़हर है , जो चढ़ जाये तो कभी उतरता नहीं
शमा खाक करदे दिल जला कर , पर ये चिराग कभी भुजता नहीं
उम्मीदों की रेत पर खड़ा होता है ये सपनों का महल ,
गर बिखर जाये टूट कर , गहरे दर्द का सैलाब कभी रुकता नही.


                                                - श्वेतिमा 



आँखें होती हैं दिल का आईना...



आँखें होती हैं दिल का आईना,
इनसे हो जाते हैं अक्सर अलफ़ाज़ बयान!

इनकी खूबसूरती के किस्से,
होते हैं मशहूर यहाँ-वहां!

रूह की सच्चाई भी उनमे,
नज़र आती है जहाँ-तहाँ!

जिनसे होता नहीं बयान उल्फत-इ-जज़्बात,
उनकी बनकर अलफ़ाज़ कह जाती है पूरी दास्तान!

कभी हुस्न, कभी मोहब्बत से मशहूर हो जाते हैं,
जाने कितनों के दिल इन निगाहों से मजबूर हो जाते हैं!



                   - ज्योत्सना, श्वेतिमा 



शब्दों की एक डोर...


शब्दों की एक डोर,
जिसका न है कोई छोर,
हम सब इसको थामे हैं,
बाकी दुनिया से हम अनजाने हैं!!

ढील कोई दे ज़रा सी,
तो कई रंग मिल जाने हैं,
जिसको छूले उसकी हो जाए,
कुछ ऐसे इसके मायने हैं!!

प्यार इश्क़ और मोहब्बत,
साथी इसके पुराने हैं,
बस लफ़्ज़ों का खेल है यारों,
अंदाज़ इसके तराने हैं!!

थामे इस डोर को ज़िन्दगी,
ये दिन यूँ कट जाने हैं,
की इससे बंधे हुए,
हम सबके अफ़साने हैं!!

बे-फ़िक़री का आलम देखो,
की वो भी इसके दिवाने हैं,
कितना दूर जायोगे इससे,
हर जगह इसके ठिकाने हैं!!

आसमान में उड़ते देखो,
कितने लफ्ज़ हमारे हैं,
जुगल-बंदी सी करते वो,
कैसे हमे पहचाने हैं!!



                    -गुंजन, ज्योत्सना 



Friday, June 12, 2015

बचपन की यादें .....



बचपन  की सब  यादें  संजो कर रखी हैं एक बक्से में 

वो यादें इतनी ताज़ा हैं जैसे अभी अभी वो जन्मीं  हैं 

उन यादों में कुछ गुड़ियाँ हैं और कुछ मिट्टी के घरोन्दे हैं 

कुछ प्यारे सैर सपाटे हैं और कुछ मासूम से वादे हैं 

नानी दादी के वो किस्से हैं जो हर एक चीज़ से अच्छे हैं 


कितनी भी लड़ाई कर लेंगे 

ये यादें कभी ना छूटेंगी 
ये किस्से कभी ना रूठेंगे 

ये यादें ही वो मोती हैं जिनका कोई मोल हो नहीं सकता 

इन अनमोल मोतियों को कोई जीवन भर खो नहीं सकता 

चल फिर से चलें उन गालियों में कुछ किस्से और बना दें हम 

जीवन भर याद रहें जो यूँ कुछ मोती और जुटा लें हम 

ना धूप की तपिश से डरते थे ना सर्दी से यूँ ठिठुरते थे 

बारिश की बौछारों में ही वो अपने खेल गुज़रते थे 

वो बचपन तो लौट नहीं सकता 

यादें ही हैं बस वो कड़ियाँ 
जो उस बचपन से मिलाती हैं
 कुछ किस्से याद दिलाती हैं 

फिर से मासूम बनाती हैं 

कहीं छुपा रहा हममे हरदम 
उस बच्चे को वो जगातीं हैं 


ज्योत्सना 

Thursday, June 11, 2015

मोहब्बत...




तस्वीरों की खूबसूरती महज़ इत्तेफ़ाक़ है,
हम तो खींचे चले आ गए तुम्हारी आँखों से!
 
तुम्हारी पलके जो थोड़ी झुकी-झुकी सी थी,
हमारी जान निकल रही थी  उठने के इंतज़ार में,
मानों कह गई कि आज मोहब्बत तय है!
 
 उन पलकों में सिमटी थी पुरानी कहानियाँ,
जज़्बात अनकहे से, अनकही रवानियाँ!
 बिन अलफ़ाज़ ही पढ़ लेते काश वो दर्द छुपा सा,
तो बिन कहे ही समझ जाते हम उनकी मजबूरियाँ!
 
जाने क्या था  वो अनकहा सा एहसास, 
जो सारे दर्द को धो गया उन अश्कों से,

काँधे सर रख कर हमारे, गीला किया था दामन,
घुलने लगी साँसे उनकी पलकों के नरम साये में,
हम पहचान ही न पाये खुद के अक्स को,
मिल गए साये हमारे मोहब्बत से!





Courtesy - श्वेतिमा, ज्योत्सना, हुमा , गुन्जन 



बारिश की बूँदें ........


बारिश  की  बूँदें  अकसर   मन  को  भिगो  जाती  हैं 
कुछ  चुप  से  अल्फ़ाज़ों  को  गीत  बना  जाती  हैं 

वक्त  की  जो  गर्त  जमा  हो  जाती  है  मन  पर 
उन  अहसासों  को  वो  अकसर बचपन  सा  कर  जाती  हैं 

काग़ज़  की  वो  कश्ती  वो  मासूम  सा  बचपन 
माज़ी  की  उस  मासूमियत  से  रूबरू  करा  जाती  हैं



ज्योत्सना 



!!.. ज़िन्दगी ..!!



ज़िन्दगी की बियाबां में मैं घूमता रहा,
कभी धूप तो कभी छाँव मैं ढूंढ़ता रहा!

बारिशों की छींटों को समुन्दर समझकर,
यूँ ही खा-म-खा क़िस्मत से अपनी लड़ता रहा!

दरख़्तों से कुछ लम्हे तोड़ता रहा,
कभी वो थे अश्क़ और कभी मुस्कुराहटें,
उनमें ही अपने अक्स को टटोलता रहा!

तेरे ग़म को अपना समझ रोता रहा,
तेरी ख़ुशी के हज़ार किस्से खोजता रहा!

मेरे हर लम्हे में उसका ज़िक्र होता रहा,
उसका हर पल मुझसे जुड़ता रहा!


मगर आरजु मुझे जिस लम्हे की थी,
वो मासूमियत से मुझे गलता रहा!

सवालों का सिलसिला बढ़ता रहा,
की जवाब में खुद मैं घिसता रहा!

नादानियों में मैं खुद डूबा रहा,
मनमर्ज़ियों से रुख वो मोड़ती रही!

तेरे वादों की हकीक़त से बेखबर मैं नासमझ,
तुझको खुदा सरीखा मैं तोलता रहा!

अब ताह-ए-क़बर में ही सुकून मिलेगा,
ज़िन्दगी मुझे यूँ ही छलती रही!

तेरी गलियों में कुछ इस कदर सुकून मिला,
की हर मोड़ पे खुद-ब-खुद मैं मुड़ता रहा!

जब पूछा तेरे घर का रास्ता,
हर मोड़ पे तेरा एक आशिक़ खड़ा मिला!


Courtesy - श्वेतिमा, ज्योत्सना, हुमा , गुन्जन