तस्वीरों की खूबसूरती महज़ इत्तेफ़ाक़ है,
हम तो खींचे चले आ गए तुम्हारी आँखों से!
तुम्हारी पलके जो थोड़ी झुकी-झुकी सी थी,
हमारी जान निकल रही थी उठने के इंतज़ार में,
मानों कह गई कि आज मोहब्बत तय है!
उन पलकों में सिमटी थी पुरानी कहानियाँ,
जज़्बात अनकहे से, अनकही रवानियाँ!
बिन अलफ़ाज़ ही पढ़ लेते काश वो दर्द छुपा सा,
तो बिन कहे ही समझ जाते हम उनकी मजबूरियाँ!
जाने क्या था वो अनकहा सा एहसास,
जो सारे दर्द को धो गया उन अश्कों से,
काँधे सर रख कर हमारे, गीला किया था दामन,
घुलने लगी साँसे उनकी पलकों के नरम साये में,
हम पहचान ही न पाये खुद के अक्स को,
मिल गए साये हमारे मोहब्बत से!
Courtesy - श्वेतिमा, ज्योत्सना, हुमा , गुन्जन
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