Thursday, June 11, 2015

!!.. ज़िन्दगी ..!!



ज़िन्दगी की बियाबां में मैं घूमता रहा,
कभी धूप तो कभी छाँव मैं ढूंढ़ता रहा!

बारिशों की छींटों को समुन्दर समझकर,
यूँ ही खा-म-खा क़िस्मत से अपनी लड़ता रहा!

दरख़्तों से कुछ लम्हे तोड़ता रहा,
कभी वो थे अश्क़ और कभी मुस्कुराहटें,
उनमें ही अपने अक्स को टटोलता रहा!

तेरे ग़म को अपना समझ रोता रहा,
तेरी ख़ुशी के हज़ार किस्से खोजता रहा!

मेरे हर लम्हे में उसका ज़िक्र होता रहा,
उसका हर पल मुझसे जुड़ता रहा!


मगर आरजु मुझे जिस लम्हे की थी,
वो मासूमियत से मुझे गलता रहा!

सवालों का सिलसिला बढ़ता रहा,
की जवाब में खुद मैं घिसता रहा!

नादानियों में मैं खुद डूबा रहा,
मनमर्ज़ियों से रुख वो मोड़ती रही!

तेरे वादों की हकीक़त से बेखबर मैं नासमझ,
तुझको खुदा सरीखा मैं तोलता रहा!

अब ताह-ए-क़बर में ही सुकून मिलेगा,
ज़िन्दगी मुझे यूँ ही छलती रही!

तेरी गलियों में कुछ इस कदर सुकून मिला,
की हर मोड़ पे खुद-ब-खुद मैं मुड़ता रहा!

जब पूछा तेरे घर का रास्ता,
हर मोड़ पे तेरा एक आशिक़ खड़ा मिला!


Courtesy - श्वेतिमा, ज्योत्सना, हुमा , गुन्जन 



1 comment:

  1. Khel khel m shuruat ho gai
    Baton hi baton m baat ho gai
    Dost tou baithe the dilon ki baat krne
    Lafzon ko jod k dekha tou nazm kuch khass ho gai

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