उस पार कुछ नही बचा, एक घर था जो लहरों ने तोड़ दिया
इस पार खड़ी होती हूँ तो अकेला सा पाती हूँ
जाने कहाँ जाएगी कश्ती , अब ये सोचती हूँ…
ख़ुदा से मिलकर अब कहाँ दिल आएगा……
जाने किस ओर निकल पड़ी हुँ.
-- श्वेतिमा
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