Tuesday, June 30, 2015

उम्मीद


उस पार कुछ नही बचा, एक घर था जो लहरों ने तोड़ दिया 
इस पार खड़ी होती हूँ तो अकेला सा पाती हूँ 

जाने कहाँ जाएगी कश्ती , अब ये सोचती हूँ… 

ख़ुदा से मिलकर अब कहाँ दिल आएगा……
जाने किस ओर निकल पड़ी हुँ. 

                                             -- श्वेतिमा 


No comments:

Post a Comment