बारिश की बूँदें अकसर मन को भिगो जाती हैं
कुछ चुप से अल्फ़ाज़ों को गीत बना जाती हैं
वक्त की जो गर्त जमा हो जाती है मन पर
उन अहसासों को वो अकसर बचपन सा कर जाती हैं
काग़ज़ की वो कश्ती वो मासूम सा बचपन
माज़ी की उस मासूमियत से रूबरू करा जाती हैं
ज्योत्सना
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