Sunday, June 21, 2015

अभी थोड़ा मरने दो..



ना करो इकरार-इ-इश्क़,
कि अभी थोड़ा मरने दो,
इन लमहों के चादर तले,
इंतज़ार थोड़ा करने दो!


युँ जला के चिराग यहाँ,

ख़ुशियाँ भरके दामन में मेरे,
आरज़ू की आग़ोश में मुझे,
थोड़ा और रहने दो!


              -गुन्जन 




1 comment: