इस खाली पन्ने पर उतारने हैं कईं अलफ़ाज़
कुछ पल कम हैं, कुछ पलकें नम हैं....
बूंदों से भरा एक नमकीन तालाब है
बादलों की चादर आज भी है हमारे आसमान में
ख्यालों की नक्काशी पर कुछ घुली सी है....
एक वक़्त था , जब वक़्त को शिकवे थे , वक़्त को खफा करने के लिए
एक वक़्त आज है , जब वक़्त से शिकवे हैं, हमें वक़्त न देने क लिए
कितना अजीब होता है वो समां , जब अपने पराये हो जाते हैं
दिल में बसाते हैं जिन्हे , वो रास्ते के मुसाफिर बन जाते हैं
आज लिखने चले जब हम अपने कारवां का किस्सा ,
जाने क्यों, अलफ़ाज़ कुछ कम से पड़ जाते हैं.…
बदले हम नही, बदला ये मंज़र कुछ यूँ है
ख़ुशी फैली है चारों तरफ, पर सीने में ग़म हैं ……
इस खाली पन्ने पर उतारने हैं कईं अलफ़ाज़
कुछ पल कम हैं, कुछ पलकें नम हैं....
-- श्वेतिमा
Wow creation it is !!
ReplyDeleteLoved each and every line of this nazm... :)
thank you
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