Sunday, July 5, 2015

उलझन


ये कैसी उलझन हैं , ये कैसी बातें हैं....

दिल से जो निकलते हैं, वो अलफ़ाज़ अक्सर अनसुने से क्यों हैं 
हम मिलते हैं रोज़ उनसे, जाने उनको ख्वाबों से इतने गिले क्यों हैं.. 

इन हवाओं में गूंजते हैं हमारी मोहब्बत के अफ़साने, 
फिर भी ये फ़िज़ाएं इतनी सूनी क्यों हैँ.. 

ये कैसी उलझन हैं , ये कैसी बातें हैं.… 

                                                                                  -- श्वेतिमा 

2 comments:

  1. Ye aapki uljhan hame senti kar gayi
    Kya baat kahi aapne dil pe teer kar gayi

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