Friday, June 12, 2015

बचपन की यादें .....



बचपन  की सब  यादें  संजो कर रखी हैं एक बक्से में 

वो यादें इतनी ताज़ा हैं जैसे अभी अभी वो जन्मीं  हैं 

उन यादों में कुछ गुड़ियाँ हैं और कुछ मिट्टी के घरोन्दे हैं 

कुछ प्यारे सैर सपाटे हैं और कुछ मासूम से वादे हैं 

नानी दादी के वो किस्से हैं जो हर एक चीज़ से अच्छे हैं 


कितनी भी लड़ाई कर लेंगे 

ये यादें कभी ना छूटेंगी 
ये किस्से कभी ना रूठेंगे 

ये यादें ही वो मोती हैं जिनका कोई मोल हो नहीं सकता 

इन अनमोल मोतियों को कोई जीवन भर खो नहीं सकता 

चल फिर से चलें उन गालियों में कुछ किस्से और बना दें हम 

जीवन भर याद रहें जो यूँ कुछ मोती और जुटा लें हम 

ना धूप की तपिश से डरते थे ना सर्दी से यूँ ठिठुरते थे 

बारिश की बौछारों में ही वो अपने खेल गुज़रते थे 

वो बचपन तो लौट नहीं सकता 

यादें ही हैं बस वो कड़ियाँ 
जो उस बचपन से मिलाती हैं
 कुछ किस्से याद दिलाती हैं 

फिर से मासूम बनाती हैं 

कहीं छुपा रहा हममे हरदम 
उस बच्चे को वो जगातीं हैं 


ज्योत्सना 

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