Thursday, November 5, 2015

एक अरसा हुआ ...



एक अरसा हुआ 
दिल की बात 
पन्नों पे बिखेरे हुए 
दिन निकल गए 
रातें गुज़र गईं 
कुछ लिखा जाए?
दिल में क्या है 
ज़ुबान पे क्या 
क़लम जो उठाओगे 
तभी तो जानोगे ?
चलो तो फिर 
कुछ लिखा जाए 
शब्दों का जाल 
बिछाया जाए 
कुछ उधर से 
कुछ इधर से 
नज़्मों का साज़ 
आज फिर छेड़ा जाये…


                 - गुन्जन 



 

Tuesday, September 22, 2015

सोचा न था !!


ये फ़िक्र के साये 
ज़िन्दगी को इस क़दर 
आधा कर देंगे 
कभी सोचा न था 
यूँ हरदम 
धुप का चश्मा 
लगाये फिरते हैं
दिल ओ दिमाग से 
ये ओझल नहीं होंगे 
कभी सोचा ना था 
एक पल जो जुदा हो 
तो कुछ लम्हे 
जी लूँ मैं भी 
वरना यूँ ता-उम्र 
घुट घुट के रहना होगा  
कभी सोचा न था 


                                       गुन्जन 

Friday, September 18, 2015

शुरुआत


एक नयी सुबह की सेहर अब खिल चली है
शायद ज़िन्दगी अब नयी करवट ले चली है
फूल खिलते हैं रोज़ बागों में
खुशबू पर अब ज़हन में बस चली है

कामयाब नहीं हुए अभी भी हम लेकिन
सपनों की दुनिया कुछ बदल सी चली है
उम्मीदें कुछ टूटी सी कुछ छूटी सी हैं लेकिन
खुशियों की दस्तक लबों पर हो चली है

सफ़र खत्म हो चूका था मंजिलों से दूर
निगाह नए काफिलों में बढ़ चली है
सारा सामान बटोरा समेटा बिखरा हुआ जब
ज़िन्दगी से दुबारा मोहब्बत हो चली है

                                              -- श्वेतिमा

Saturday, September 5, 2015

सपना


आज सुबह जब आँख खुली
तो चेहरा एक उमने समाया था
शिकायत नही थी कोई अभी तक
बस जाने क्यूँ तुमने इतना इंतज़ार करवाया था

सपने देखे थे कभी जो सुहाने
टूट कर बिखर गए थे हमारे
फिर क्यूँ आज दस्तक देकर नींद को
तुमने समेटे वो टुकड़े सारे

दीवार पर लगी उस तस्वीर को
आज भी सजा रखा था वहीँ
बस कुछ धूल जम गई थी उसपर
याद ताज़ा कर गई ज़रा साफ़ करने पर जो

कुछ रिश्ते जो कभी टूट गए
आज कुछ अजनबियों ने जोड़ दिए
आज भी जब देखलीं ऑंखें तुम्हारी
क्यूँ मायूसी एक हंसी में बदल गयी

आज सुबह जब आँख खुली
सपना तुम्हारा ही आया था
जोड़कर सभी बातें अधूरी
क्यूँ तुमने यूँ प्यार जताया था...

                                -- श्वेतिमा


Tuesday, September 1, 2015

एक सुबह


एक उजली सी सर्द सुबह में
हमने उन प्यारी मुस्कानों को पाया है
जहाँ सेहर के कम्बल ओढ़े, मूंदी आँखों से
धीमे धीमे कानो में हवा के झोंकों से
चिड़ियों ने एक गीत सुनाया है...
                                            -श्वेतिमा

नाराज़गी


आज वो बहुत रूठी है हमसे

वो, नज़र भर देखा करती थी जो
पीठ पर थपकियाँ देती थी जो
रोज़ चंद घड़ियों में ख़ुशी ढूंड लाती थी जो

आज कुछ नाराज़ सी है हमसे

अब जब बैठे ही हैं मनाने उसे
मोतियों की तरह पिरोते थे जिसे
शब्द नही सूझ रहे सजाने को

नयी स्याही होगीे वादे किये कुछ ऐसे
पिछले रंग की निशान मिटा भी नही पाए
खाली पन्नो को अब ताकते हुए
कलम जो यह रूठी, तो अब मनाये कैसे...

                                 -- श्वेतिमा

Saturday, August 22, 2015

कुछ ख्याल


बहोत मुश्किलों से एक तितली हाथों पर बिठाई थी
बादलों ने जब पंख लगाये, तो उसे भी साथ उड़ा ले गई

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उँगलियों के सिरों से बुनी थी ये मखमली सपनों की चादर
दोपहर की तपिश से बचने के काम भी न आ सकी
     
                                                            - श्वेतिमा 

Wednesday, August 12, 2015

धूल

आज भी जब उन गलियों से गुज़रते हैं
वक़्त की किताब से पुराने पन्ने पलटते हैं
जहाँ कभी रोशन चांदनी थी
सपनों की रवानी थी
लम्हों में जवानी थी
और जैसे काबू जिंदगानी थी

उन हरे पत्तों से टपकती बूदों के हीरे
और मिट्टी की खुशबू में महकती तस्वीरें
जब झाड़ी वो चादर
बिखर कर गिर गए वो हज़ार तारे
जिन्हें पलकों से तोड़ा था
रखकर सर तुम्हारे कांधे के सहारे

बदल गए है लोग, बदला सा कुछ वक़्त भी है
पर जाकर जब छुए तुम्हारे क़दमों के निशान,
ये लम्हा वहीँ ठहर सा गया है

भूले गर होते तो अजनबी होते इस शहर में
पर खिली हैं कुछ बंद कलियाँ
कुछ रात की रेत धुली सी है
अहसास कुछ घुला सा है हवाओं में
और सुकून समाया है शामों सेहर में

                                           - श्वेतिमा

Tuesday, August 11, 2015

वो जज़्बात

वो नदी जो बहती थी, किनारे कुछ टूटे से हैं अब उसके
ठंडी हवा जो चलती थी वहां, अब कुछ उमस सी रहती है

कुछ तो सूख गया है, या कुछ रूठ गया है
जो बच्चा था हँसता खिलखिलाता सा, वो सपने बुनना भूल गया है

सुनहरे पंख लिए, बादलों से उपर उड़ान भरता था जो
आज बरस कर गिरा है, जहाँ पानी से बुल्बुले भी नही बनते

चल पड़े थे साहिल पर अपने निशान छोड़े
ये इल्म नही था, लहरें वक़्त से आगे निकल जाएँगी

कल रात चाँद आया था, एक नया सवेरा रोशन करने
उन रेत के टीलों पर बनी तस्वीर को चांदनी से भरने
पर कुछ बदलियाँ शरारतीं थीं, कुछ नीन्द मेहरबान थीं
ख्वाबों को कम्बल उढ़ा कर , गर्म साँसे भी सुला दीं

                   -श्वेतिमा

Saturday, August 8, 2015

अगर.…


यूँ ना दुनिया में मतलब के साथी ढूंढ़ते
अगर तुम साथ होते

यूँ ना हर किसी भी शख़्श के नखरे उठाते
अगर तुम साथ होते

दिल में अकेलेपन के यूँ ज़ख्म न होते
अगर तुम साथ होते

यूँ ना अजनबियों में ख़ुशी ढूंढ़कर मुस्कुराते
अगर तुम साथ होते

आईने से यूँ खुद की तारीफ न करते
अगर तुम साथ होते

शौक पूरे करने के लिए यूँ हर एक को न मनाते
अगर तुम साथ होते,
अगर तुम साथ होते…

                                                              -- श्वेतिमा 

Friday, August 7, 2015

कुछ ऐसे ही

वो ज़ालिम मुह फेर लेते हैं 
अनजान बनते हैं ,
चाहते हैं वो भी बहुत 
पर आँखें बंद कर लेते हैं 

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तुम्हारी ये नज़ाकत 
दिल बहार कर जाती है
साँसे तुम्हारी जब छुटती हैं तो साज़ बन जाती हैं, 
मोतियों सी चमकती तुम्हारी ये ऑंखें 
झुकें तो हया और उठे तो जहान बन जाती हैं 

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इस नज़ाकत से भरी सरगोशियों की अदा क्या खूब है 
तेरी नज़रों की हया में छुपी ताज़गी की फ़िज़ा क्या खूब है

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एक मुस्कराहट ऐसी है 
जो हलका करदे सारी ज़मीन 
जो दीदार हो जाये थकी आँखों से,
तो बन जाए ज़िन्दगी वहीँ 

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अब जो बिछड़े थे 
सोचा ना था वो लौटकर नही आएंगे 
हम तो आज भी ऑंखें बिछाये बैठे हैं राहों पर 
जानते हैं, मंज़िलों पर हम उन्हे न पाएंगे 

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                                                                                         -- श्वेतिमा 


दोस्ती


दोस्ती वो अलफ़ाज़ है जिसका मायना बयां नही होता 
दिल से जुड़े इन रिश्तों का , 
कभी दौर पुराना नही होता …
                               
                                                       --श्वेतिमा  

Thursday, August 6, 2015

शिकायतें


हम उनका साथ देते गए , धक्का करते गए 
उन्होंने पलटकर कभी हमारी पीठ भी नही थपथपाई 

हम राहों से उनकी, काटें चुनते गए 
उन्होंने ज़रा थमकर हमारी पलकें भी नही सहलायीं...

                                                                     -- श्वेतिमा 

Monday, August 3, 2015

वक़्त..



अक्सर मैंने वक़्त चलते देखा है,
घडी की सुईयों को ख्वाब बुनते देखा है,
मन्ज़िल बदलती है हर पल उसकी,
अपनी हर मन्ज़िल से आगे बढ़ते देखा है। 

जीवन का फलसफा भी अजीब है,
ख़ुशी मिले तो वक़्त थामने की बात करते हैं,
इस मतलबी दुनिया में अक्सर मैंने,
ग़म को हरपल हमपे हसते देखा है। 


                  -गुन्जन 



Saturday, August 1, 2015

दर्द


ज़माना अकसर ये पूछता है हम से 
क्यों ताल्लुक है तुम्हारा इसतरह दर्द से 
इसकदर मदहोशी क्यों छाई है 
क्यों धुंदली सी चादर आँखों में समाई है 

उन्हें जवाब नही दे पाते , बस कह देते हैं 
जो बेइन्तेहाई का सैलाब दिलभरकर रखा है 
उसके ही कुछ छींटे हैं 
जो अक्सर रूह को भिगो जाते हैं 

                                                   -- श्वेतिमा 

चलो चलें आज

चलो चलें आज 
डालकर झूलें उन ठंडी छाँव में
जहाँ कोयल गाती है मीठा सा 
रस घोलकर आमों के बागों में


चलो चलें आज 
 उन पतली सुखी पगडंडियों पर 
जहाँ बिछी है ज़मीन पर पीली चादर 
और मोर नाचे खलिहानों में थिरक कर 

चलो चलें आज 
उन दोपहर की गरम हवाओँ में 
जहाँ कूदते उछलते पहुंच चले 
गाँव के उन शांत गलियारों में 

चलो चलें आज 
काली गहरी रात की आखिरी लकीर पर 
जहाँ सुबह की अँखियों से 
देखें लाल सूरज उन ओस की बूंदों पर  

चलो चलें आज, चलो चलें आज...

                                                     -- श्वेतिमा 


Thursday, July 23, 2015

पानी के बुलबुले..



खुशमिजाज़ रहते हैं,
ये पानी के बुलबुले,
ज़रा से स्पर्श से ही,
खिलखिला उठते हैं,
प्यार की थपकी दो तो,
जैसे नाच ही उठते हैं,
मालिक अपनी ज़िन्दगी के,
ये खुद ही होते हैं,
मन चाही उड़ान,
ये गगन में भरते हैं,
पकड़म पकड़ाई हमसे,
ये खेला करते हैं,
हाथ में हमारे,
ना ये आया करते हैं,
रंगो में कुछ लिपटकर,
करवट लिया करते हैं,
हलकी सी फूक से ही,
दूर उड़ान भरते हैं!!

काश ये ज़िन्दगी होती,
पानी के बुलबुलों जैसी,
जो ग़म की बरसात भी होती,
तो आँसुओं को धो देती,
मेरी हर ख्वाहिश को,
एक रास्ता मुकर देती!!

             - गुन्जन 


बे-मकसद ये ज़िन्दगी..



दिल चाहता है कभी कि नापने निकल पडूँ ज़मीन यूँ ही,
ना देखूँ दिन ना देखूँ रात बस चलता रहूँ यूँ ही,
इस बे-मकसदि से चलने में ही शायद पा लूँ खुद को,
बे-फ़िक्री भरे इस सफर में बस यूँ ही चलता रहूँ,
कुछ अनजान चेहरे दिखें, जिनको जानता-पहचानता मैं हूँ नहीं,
लेकिन वो भी हैं ज़िन्दगी के सफर के मुसाफिर मुझ जैसे ही,
हर रोज़ की ज़ेहनी मुशक्कत से दूर, 
पा लूँ कुछ ज़ेहनी सुकून,
कुछ रास्ते बे-मकसद अक्सर मकसद दे जाते हैं ज़िन्दगी को!!

                -ज्योत्सना 


ज़िन्दगी फिर यूँ ही..


ज़िन्दगी फिर यूँ ही छलती चली गई,
हमको बस अपने बस में करती चली गई,
समझ आने लगा कुछ यूँ कि दोस्ती करलें इससे,
रिश्ता अगर ये बना ले तो शायद ये साथ दे,
बस जो ही रिश्ता बना दोस्ती का इससे,
ये नए रंग मुझमे भरती चली गई,
ज़िन्दगी के मायने समझने में ज़िन्दगी गुज़रती चली गई,
हर शख़्स का फलसफा है मुख़्तलिफ़ ज़िन्दगी का फिर भी सही फलसफा है,
अगर मान लो तो हर लम्हा ज़िन्दगी का है ज़िन्दगी से भरा,
और ना मानो तो हर लम्हा है खालीपन से भरा!!

                - ज्योत्सना 


Sunday, July 19, 2015

रास्ते


रोज़ उठकर सुबह यही सोचते हैं 
जो दुरी है घर से , वो आज फिर नापनी है …

वो सारे रास्ते वहीँ रहते हैं
और हम रोज़ उन्ही से गुज़रते हैं
क्या जो चाहिए , वो सही में चाहिए 
ये सवाल रोज़ पूछते हैं
पर जवाब कभी सुनाई नही देता 
फिर मना लेते हैं खुद को 
अब जीने की यही एक मंज़िल जो दिखती है

चारों तरफ अँधेरे से जब गुज़रो 
बहुत मुश्किल है खुद को टूटने से रोकना
अश्क बहाने के लिए जब वो सहारा न मिले 
तो टुकड़े कर देता है उन्हें पलकों में ही समाना  

आवाज़ देते हैं पर उधर पहुंचा नही पाते 
गलती ये करते हैं की पुकार लेते हैं 
दर्द में अल्फ़ाज़ अक्सर बंद आँखों से निकलते हैं 
खुली आँखों से रोज़ कईं हज़ार चहेरे देखते हैं

जाने वाले नही आएंगे कभी लौटकर 
ये कहते हैं रोज़ दिल से 
पर वो तो मासूम है 
वो क्या जाने ये दुनिया की आदतें 
इश्क़ का चिराग रोशन करता है 
और स्याह कर देता है इन आँखों को 

कईं मोड़ मुड़कर भी 
रास्ते वापिस वहीँ से शुरू हो जाते हैं 
फिर भी रोज़ उठकर सुबह यही सोचते हैं 
जो दुरी है घर से, वो आज फिर नापनी है
जो दुरी है घर से, वो आज फिर नापनी है.…
                                      
                                                           -- श्वेतिमा 



हम


बहुत सादादिली है हमारी की
रुख बदलने पर भी फ़िज़ाओं का 
हमने दामन बहारों से सजा रखा है...

                                                -- श्वेतिमा 

Wednesday, July 15, 2015

उम्मीद..



कुछ मयार ऐसा था उम्मीदों का हमारी,
कि न-उम्मीदी का दामन तो थामना ही था,
काँटों के राहे गुज़र पे लेकिन खुद को सम्भालना ही था,
ज़ख़्मी पैर नहीं रूह हुई थी, फिर भी उस रूह को संवारना ही था,
किसने कहा के बदलते नहीं हैं वो मुश्किलात के लम्हे,
इस फलसफे को हमे सुधारना ही था!!

                           
                                 - ज्योत्सना 


फ़िज़ा ..



फ़िज़ा ने कहा मैं साथ ले आई हुँ 
कुछ खुशबुएँ कुछ रंग-इ-ख्वाहिशें,

फ़ितरत नहीं मेरी रुकने की 
रुक ना सकूँगी इसलिए!

मुझसे ना कहना कि फितरत बदल दूँ मैं,
ना ठहरना ही तो आदत है मेरी!

कुछ रेत के कतरे भी साथ उड़ा लाई हुँ,
उनकी हमसफ़र बनके यहाँ तक आई हुँ!

कभी ख़ामोश हुँ मैं, कभी थोड़ी सी हुँ आवाज़,
खुशनुमा हुँ कभी, और हुँ कभी तूफ़ान का आग़ाज़!

कभी बेघर हुँ ऐसा है मुझे एहसास,
और कभी लगता है आशियाना ये पूरा जहान!


                 -ज्योत्सना 


दर्द



इतना दर्द है निकलता तुम्हारी कलम से,
कि पूछुँ तुमसे -  तुम खैरियत से हो न?

रूह में इस क़दर मिल जाते हैं अलफ़ाज़ तुम्हारे,
कि कहुँ तुमसे - खयालों से मुलाकात ज़ारी रखना!

तेरी एक हसी के क़ायल तो हम हैं ही,
कि समझाऊँ तुम्हे- तुम उदास कभी मत होना!

एक और वक़्त है जहाँ तुम आज़ाद परिन्दे सी हो,
कि बताऊँ तुम्हें- वो वक़्त सिर्फ आँखों में ही है मेरी बसा!

इरादा तो तुमसे बस गुफ़्तगू का ही है,
कि एहसास कराऊँ तुम्हें- दिल में तेरे बस मैं हूँ बसता!


                   -गुन्जन


Saturday, July 11, 2015

तब्दीली



रोज़ बदलती ज़िन्दगी में हम कुछ यूँ उलझ गए 
की आज का खुशनुमा समां हम महसूस भी न कर सके… 

जिस के सहारे हम रोशन किया करते थे अपनी भुझ्ती रातें,
आज उन्ही को पलकों से ओझल किये हम आगे बढ़ चले… 

                                                                                  --- श्वेतिमा 

जो खो गया



आजकल बहुत बदला है कुछ 
पहले जो आदत थी खूब बांटने की …
नहीं रहती पास अब मेरे
क्या बांटने से खत्म हो गयी,
या कहीं खो गयी मुझसे ,
बहुत की कोशिश पर मिली नही वहां ,
जहाँ आखिरी बार मिले थे उससे… 

कुछ पुरानी तसवीरें याद दिलातीं हैं सबूत
कहीं छोड़ तो नही आये उस पुराने रास्ते क दरख़्त पर 
सबसे मिलते थे पहन कर जिसे,
क्यों अब सिल नहीं पाते दुबारा वो किस्से … 

किसी ने टोका नही अभी तक ,
शायद अब दोस्त भी बदल लिए
पुरानी हवेली जाएंगे तो सब शोर मचाएंगे ,
कहाँ लूटा आये हो ये दौलत 
बता देंगे उन्हें अपनी ये उलझन, वो तो जिगर हैं हमारे
जो मुस्कुरा रहें हैं अभी भी, उम्मीद है हंस भी लेंगे कभी …  

                                                                                   -- श्वेतिमा 

Thursday, July 9, 2015

कुछ किस्से..



आ बैठें चल करलें ज़िन्दगी की गुफ़्तगू दो-चार,
वक़्त कहीं ज़ाया ना हो जाए यूँ ही ज़ार-ज़ार,
यूँ तो एक उम्र ही कम है किस्से बयां करने को,
कुछ एक किस्सों से मगर आज आग़ाज़ हो जाए,
ज़िक्र जब हो ही चला है कुछ आम-ख़ास किस्सों का,
चल आज कुछ तेरी-मेरी कैफ़ियत भी आम हो जाए,
हर एक शख्स के तमाम किस्सों में,
ज़िन्दगी के फलसफे बयां हो जाएं.... 

              -ज्योत्सना


Sunday, July 5, 2015

उलझन


ये कैसी उलझन हैं , ये कैसी बातें हैं....

दिल से जो निकलते हैं, वो अलफ़ाज़ अक्सर अनसुने से क्यों हैं 
हम मिलते हैं रोज़ उनसे, जाने उनको ख्वाबों से इतने गिले क्यों हैं.. 

इन हवाओं में गूंजते हैं हमारी मोहब्बत के अफ़साने, 
फिर भी ये फ़िज़ाएं इतनी सूनी क्यों हैँ.. 

ये कैसी उलझन हैं , ये कैसी बातें हैं.… 

                                                                                  -- श्वेतिमा 

दोस्ती


खुशबू जैसे चमन से कभी शफ़ा नही होती 
धड़कने दिल से कभी जुदा नही होतीं 
चकोर की मोहबत चाँद से जैसे कभी खफा नही होती ,
ऐ यार !! दोस्ती वैसे ही रहती है कभी बेवफा नही होती..... 

                                                                         --- श्वेतिमा 

वोह …


छोड़ो!! जो साथ नही उसकी क्या बात करनी
 याद आने पर क्यों नमकीन ये ज़बान करनी …… 
दीदार होता है जिसका रोज़ सुबह इन आँखों में,
उसको सपनों से  बाहर लाने की ख्वाहिश क्यों करनी … 

                                                                       -- श्वेतिमा 

Friday, July 3, 2015

हमसफ़र..



मंज़िल दूर नहीं है,
तेरे आस-पास होने के आसार जो मिल गए हैं!

तू मंज़िल है, सफर पर नज़र है,
साथ मिल जाए तेरा, तो किसकी फिर फ़िक़र है!

ज़माने का डर ना रुसवाई की शिकन है,
तू जैसा है जो भी है, सबसे जिगर है!

हर तरफ ख़ुशी है ना कोई ग़म है,
कि ये बस तुम्हारे साथ का असर है!

मंज़िल की ना रास्तों की फ़िक़र है,
शब-ओ-सहर ना मौसमों की फ़िक़र है,
धूप भी चाँदी, रात भी रोशनी,
क्युंकि! तु हमसफ़र है
क्युंकि! तु हमसफ़र है

हमसफ़र हमराही मिल गया,
कश्ती को किनारा मिल गया,
तू जो सामने दिखा मुझे,
मेरी अधूरी ख़्वाहिशों को सहारा मिल गया!


            - गुन्जन, हुमा, ज्योत्स्ना, श्वेतिमा 


नज़रें करम..



एक नक़्श उभरा था,
आँखों में उतारा था,
कुछ उसको सँवारा था,
फिर काग़ज़ पे उतारा था!

ये ना कभी सोचा था,

युँ नज़रें करम होंगी,
अलफ़ाज़ हमारे भी,
दुनिया की नज़र होगी!


                               -हुमा


इन्तेहाँ हो गई इंतेज़ार की..



कुछ कम कुछ ज़्यादा 
थोड़ा इंतेज़ार 
थोड़ा तुमसे मिलने का इरादा,

कुछ इस क़दर पकड़ लिया है ज़िन्दगी ने,
मेरा वजूद रह गया आधा-आधा!


अब हाल ये है की जी रहे हैं,
तुम्हें सुन रहे हैं और ज़खम सीं रहें हैं,
इंतेज़ार है कि लौट के आएं वापस,
बस गिन-गिन लमहे बेबसी के घूंठ पी रहें हैं!


                  -हुमा 


Thursday, July 2, 2015

कुछ अनकहा



इस खाली पन्ने पर उतारने हैं कईं अलफ़ाज़ 
कुछ पल कम हैं, कुछ पलकें नम हैं.... 

बूंदों से भरा एक नमकीन तालाब है 
अक्स दिखता है पर, परछाई कुछ धूलि सी है 
बादलों की चादर आज भी है हमारे आसमान में 
ख्यालों की नक्काशी पर कुछ घुली सी है.... 

एक वक़्त था , जब वक़्त को शिकवे थे , वक़्त को खफा करने के लिए
एक वक़्त आज है , जब वक़्त से शिकवे हैं, हमें वक़्त न देने क लिए 

कितना अजीब होता है वो समां , जब अपने पराये हो जाते हैं 
दिल में बसाते हैं जिन्हे , वो रास्ते के मुसाफिर बन जाते हैं 
आज लिखने चले जब हम अपने कारवां का किस्सा ,
जाने क्यों, अलफ़ाज़ कुछ कम से पड़ जाते हैं.…

 बदले हम नही, बदला ये मंज़र कुछ यूँ है 
ख़ुशी फैली है चारों तरफ, पर सीने में ग़म हैं …… 
इस खाली पन्ने पर उतारने हैं कईं अलफ़ाज़ 
कुछ पल कम हैं, कुछ पलकें नम हैं.... 


                                                                                              -- श्वेतिमा 

Wednesday, July 1, 2015

Busy Busy ..



आलम है थोड़ी मशरूफ़ियत थोड़ा फ़िक्र का,
थोड़ी तेज़ रफ़्तार है ज़िन्दगी, वक़्त है थोड़ा ज़िक्र का,
ख़ौफ़ज़दा ना हो तुम.. हम हैं यहाँ मौज़ूद,
मिलते ही फुरसत आना है लौट के ज़रूर!!

                             - हुमा 


Tuesday, June 30, 2015

तुम.…

ज़िन्दगी की आंच पर हमने कईं आसूं सकें हैं ,
तुम्हे मांगने की आरज़ू में कईं सिक्के तालाब में फेंके हैं 

दोनों हाथ उठाकर हमें दुआओं में तुम्हारी मुस्काने मांगी हैं ,
शायद अपने गम की ख़ुशी में ही उमने अपने वजूद की सच्चाई जानी है. 


                                                                                                  -- श्वेतिमा 

उम्मीद


उस पार कुछ नही बचा, एक घर था जो लहरों ने तोड़ दिया 
इस पार खड़ी होती हूँ तो अकेला सा पाती हूँ 

जाने कहाँ जाएगी कश्ती , अब ये सोचती हूँ… 

ख़ुदा से मिलकर अब कहाँ दिल आएगा……
जाने किस ओर निकल पड़ी हुँ. 

                                             -- श्वेतिमा 


ज़िन्दगी


बचपन की बातें अब किस्से कहानियां सी लगती हैं … 
… कभी कभी सोचती हूँ 
हर दिन पलटतेह ज़िन्दगी के पन्ने , एक किताब सी बनती है 

बहुत कुछ है बताने को , बहुत यादें सिमटती हैं इसमें 
कोई हमराही नही होता लेकिन ,
साथ जताने को.... 

                                                              -- श्वेतिमा 


सुन ऐ वक़्त..



सुन ऐ वक़्त!
तुझे ख़र्च करलूँ?
थोड़ा अपने लिए, कुछ अपनों के लिए..

मशरूफ़ियत का दामन,
भला कब तक रहेगा पकड़े..
तुझे रोक दूँ?
थोड़ा अपने लिए, कुछ अपनों के लिए..


                                   - गुन्जन 


Sunday, June 28, 2015

मौसम


सौन्दी सौन्दी गीली मिटटी की खुशबु है 
पत्तियों में भीगे योवन की मुस्कराहट 
पानी में बनते बुलबुलें 
और टपकती बूदों की साज़..... 

बादलों को चीरती ये बिजलियों की गरगराहट 

और इन ठंडी हवाओं की प्यारी थपकियाँ 
आज सब छोड़ कर ऐ रही,
चल जियें वो बचपन के सारे जज़्बात.....

                                               -- श्वेतिमा 

मोह्हबत के अफ़साने....



हम वो नहीं थे जो बन गए इन कातिल नज़रों के ईशारों में
बातें करती हैं पलकें तुम्हारी अल्फ़ाज़ों की ख़ामोशी में.…
देखते ही जब दिल ने चुन लिया था तुम्हे हज़ारों में
ऐ काश ! बस तभी थम जाते, उलझे नही होते यूँ जज़बातों में.…

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मोह्हबत नही, हम तुमसे नफरत की फ़रियाद करते हैं ……
कुछ इसी बहाने से , वो हमें याद तो करते हैं

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हर शायर मोह्हबत का मारा नही होता ,
ये तो ज़ालिम दुनिया है.… जिसने इश्क़ को बदनाम किया हुआ है

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आँखें बंद करने से तुम सच्चाई झुटला नही सकते ,
तकदीर का लिखा वक़्त से कभी चुरा नही  सकते …
चाहे जितना घिस लो इन हाथों को पत्थरों से ,
लकीरों के निशान कभी मिटा नही सकते....


                                                         -- श्वेतिमा 

Wednesday, June 24, 2015

नया सवेरा....



सुबह सुबह सूरज की किरणें जब खिड़की से आती हैं
हर एक जीवन मे वो प्रतिदिन नया सवेरा लाती हैं

वही पेड़ हैं वही हैं पौधे वही विहग और पक्षी हैं
उनमें प्रतिदिन नयी ऊर्जा का संचार कराती हैं

सुबह सवेरे चीर अँधेरा रात को फिर से सुलाती हैं
क्षण भर भी जो रही निराशा उसको भी ये मिटाती हैं

आशा से परिपूर्ण दीप ये फिर से हृदय में जलाती हैं
सुबह सवेरे सूरज की किरणें नया सवेरा लाती हैं

इन किरणों की उज्जवलता से मन हर्षित हो जाता है
नये लक्ष्य तय करने को मन में विश्वास जगाती हैं
इसी विश्वास को लक्ष्य जीतने का आधार बनाती हैं

इसी तरह सूरज की किरणें नया सवेरा लाती हैं




                                                         - ज्योत्सना 

Monday, June 22, 2015

ख़ुशी हुँ मैं..



जुदा-जुदा से अंदाज़ में,
हर किसी के एहसास में,
ज़िन्दा हुँ मैं,
ख़ुशी हुँ मैं!

लबों पे मुस्कान कभी,
आँखों से बूँदें बनके,
छलकती हुँ मैं,
ख़ुशी हुँ मैं!

हर दुआ में,
ज़िन्दगी के हर सफर में,
साथ चलती हुँ मैं,
ख़ुशी हुँ मैं!

कभी दिल में बसती हुँ,
बनके मुसकान कभी होंठों पे खिलती हुँ,
हर किसी की हसरत हुँ मैं,
ख़ुशी हुँ मैं!

ना है कहीं आशियाना मेरा,
ना कोई ठिकाना मेरा,
प्यार के एहसास में मिलुंगी मैं,
ख़ुशी हुँ मैं!


                - गुन्जन 



यादों की चादर तले..


यादों की चादर तले,
एक प्यारा सा ख़्वाब दिखे,
ओढ़ के ख़्वाहिशों की चादर,
चलो चाँद की सीढ़ी चढ़ें!


खुशियों का थामे हाथ,
सूरज से चलो आज मिले,
किरनों से उसकी लिपटकर,
आहिस्ते से बातें करें!



          - गुन्जन, श्वेतिमा 



Sunday, June 21, 2015

अभी थोड़ा मरने दो..



ना करो इकरार-इ-इश्क़,
कि अभी थोड़ा मरने दो,
इन लमहों के चादर तले,
इंतज़ार थोड़ा करने दो!


युँ जला के चिराग यहाँ,

ख़ुशियाँ भरके दामन में मेरे,
आरज़ू की आग़ोश में मुझे,
थोड़ा और रहने दो!


              -गुन्जन 




Friday, June 19, 2015

Random..


बड़ी मुद्दत बाद ये ख़्वाहिश जगी है,
कि दिल में तेरे बस पनाह मिल जाए,
यूँ तो तरसे हज़ारों आशिक़,
मुझे बस तेरी एक नज़र मिल जाए!

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खुशनसीब होते हैं वो,
जिन्हें इश्क़ होता है,
वरना ज़िन्दगी में हर क़दम पे,
हमने तो देखा बस धोखा है,

=====

बे-वजह हमे यूँ ना हसाओ,
कहदो कि इश्क़ है तुम्हे,
यूँ छुप-छुप के मिलने से,
हमने तुम्हे कब रोका है?

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                                   -गुन्जन


Thursday, June 18, 2015

आज़माइशें....



आज़माइशें भी कुछ मुस्कुरा के यूँ कह चलीं
के इस चट्टान को ना हम अब आज़माएंगे

कुछ असर ही ऐसा है दुआओं में इसकी
मुसलसल हम इरादों से इसीके हार जायेंगे।


ज्योत्सना 

मोहब्बत वो ज़हर है...



मोहब्बत वो ज़हर है , जो चढ़ जाये तो कभी उतरता नहीं
शमा खाक करदे दिल जला कर , पर ये चिराग कभी भुजता नहीं
उम्मीदों की रेत पर खड़ा होता है ये सपनों का महल ,
गर बिखर जाये टूट कर , गहरे दर्द का सैलाब कभी रुकता नही.


                                                - श्वेतिमा 



आँखें होती हैं दिल का आईना...



आँखें होती हैं दिल का आईना,
इनसे हो जाते हैं अक्सर अलफ़ाज़ बयान!

इनकी खूबसूरती के किस्से,
होते हैं मशहूर यहाँ-वहां!

रूह की सच्चाई भी उनमे,
नज़र आती है जहाँ-तहाँ!

जिनसे होता नहीं बयान उल्फत-इ-जज़्बात,
उनकी बनकर अलफ़ाज़ कह जाती है पूरी दास्तान!

कभी हुस्न, कभी मोहब्बत से मशहूर हो जाते हैं,
जाने कितनों के दिल इन निगाहों से मजबूर हो जाते हैं!



                   - ज्योत्सना, श्वेतिमा 



शब्दों की एक डोर...


शब्दों की एक डोर,
जिसका न है कोई छोर,
हम सब इसको थामे हैं,
बाकी दुनिया से हम अनजाने हैं!!

ढील कोई दे ज़रा सी,
तो कई रंग मिल जाने हैं,
जिसको छूले उसकी हो जाए,
कुछ ऐसे इसके मायने हैं!!

प्यार इश्क़ और मोहब्बत,
साथी इसके पुराने हैं,
बस लफ़्ज़ों का खेल है यारों,
अंदाज़ इसके तराने हैं!!

थामे इस डोर को ज़िन्दगी,
ये दिन यूँ कट जाने हैं,
की इससे बंधे हुए,
हम सबके अफ़साने हैं!!

बे-फ़िक़री का आलम देखो,
की वो भी इसके दिवाने हैं,
कितना दूर जायोगे इससे,
हर जगह इसके ठिकाने हैं!!

आसमान में उड़ते देखो,
कितने लफ्ज़ हमारे हैं,
जुगल-बंदी सी करते वो,
कैसे हमे पहचाने हैं!!



                    -गुंजन, ज्योत्सना 



Friday, June 12, 2015

बचपन की यादें .....



बचपन  की सब  यादें  संजो कर रखी हैं एक बक्से में 

वो यादें इतनी ताज़ा हैं जैसे अभी अभी वो जन्मीं  हैं 

उन यादों में कुछ गुड़ियाँ हैं और कुछ मिट्टी के घरोन्दे हैं 

कुछ प्यारे सैर सपाटे हैं और कुछ मासूम से वादे हैं 

नानी दादी के वो किस्से हैं जो हर एक चीज़ से अच्छे हैं 


कितनी भी लड़ाई कर लेंगे 

ये यादें कभी ना छूटेंगी 
ये किस्से कभी ना रूठेंगे 

ये यादें ही वो मोती हैं जिनका कोई मोल हो नहीं सकता 

इन अनमोल मोतियों को कोई जीवन भर खो नहीं सकता 

चल फिर से चलें उन गालियों में कुछ किस्से और बना दें हम 

जीवन भर याद रहें जो यूँ कुछ मोती और जुटा लें हम 

ना धूप की तपिश से डरते थे ना सर्दी से यूँ ठिठुरते थे 

बारिश की बौछारों में ही वो अपने खेल गुज़रते थे 

वो बचपन तो लौट नहीं सकता 

यादें ही हैं बस वो कड़ियाँ 
जो उस बचपन से मिलाती हैं
 कुछ किस्से याद दिलाती हैं 

फिर से मासूम बनाती हैं 

कहीं छुपा रहा हममे हरदम 
उस बच्चे को वो जगातीं हैं 


ज्योत्सना 

Thursday, June 11, 2015

मोहब्बत...




तस्वीरों की खूबसूरती महज़ इत्तेफ़ाक़ है,
हम तो खींचे चले आ गए तुम्हारी आँखों से!
 
तुम्हारी पलके जो थोड़ी झुकी-झुकी सी थी,
हमारी जान निकल रही थी  उठने के इंतज़ार में,
मानों कह गई कि आज मोहब्बत तय है!
 
 उन पलकों में सिमटी थी पुरानी कहानियाँ,
जज़्बात अनकहे से, अनकही रवानियाँ!
 बिन अलफ़ाज़ ही पढ़ लेते काश वो दर्द छुपा सा,
तो बिन कहे ही समझ जाते हम उनकी मजबूरियाँ!
 
जाने क्या था  वो अनकहा सा एहसास, 
जो सारे दर्द को धो गया उन अश्कों से,

काँधे सर रख कर हमारे, गीला किया था दामन,
घुलने लगी साँसे उनकी पलकों के नरम साये में,
हम पहचान ही न पाये खुद के अक्स को,
मिल गए साये हमारे मोहब्बत से!





Courtesy - श्वेतिमा, ज्योत्सना, हुमा , गुन्जन 



बारिश की बूँदें ........


बारिश  की  बूँदें  अकसर   मन  को  भिगो  जाती  हैं 
कुछ  चुप  से  अल्फ़ाज़ों  को  गीत  बना  जाती  हैं 

वक्त  की  जो  गर्त  जमा  हो  जाती  है  मन  पर 
उन  अहसासों  को  वो  अकसर बचपन  सा  कर  जाती  हैं 

काग़ज़  की  वो  कश्ती  वो  मासूम  सा  बचपन 
माज़ी  की  उस  मासूमियत  से  रूबरू  करा  जाती  हैं



ज्योत्सना 



!!.. ज़िन्दगी ..!!



ज़िन्दगी की बियाबां में मैं घूमता रहा,
कभी धूप तो कभी छाँव मैं ढूंढ़ता रहा!

बारिशों की छींटों को समुन्दर समझकर,
यूँ ही खा-म-खा क़िस्मत से अपनी लड़ता रहा!

दरख़्तों से कुछ लम्हे तोड़ता रहा,
कभी वो थे अश्क़ और कभी मुस्कुराहटें,
उनमें ही अपने अक्स को टटोलता रहा!

तेरे ग़म को अपना समझ रोता रहा,
तेरी ख़ुशी के हज़ार किस्से खोजता रहा!

मेरे हर लम्हे में उसका ज़िक्र होता रहा,
उसका हर पल मुझसे जुड़ता रहा!


मगर आरजु मुझे जिस लम्हे की थी,
वो मासूमियत से मुझे गलता रहा!

सवालों का सिलसिला बढ़ता रहा,
की जवाब में खुद मैं घिसता रहा!

नादानियों में मैं खुद डूबा रहा,
मनमर्ज़ियों से रुख वो मोड़ती रही!

तेरे वादों की हकीक़त से बेखबर मैं नासमझ,
तुझको खुदा सरीखा मैं तोलता रहा!

अब ताह-ए-क़बर में ही सुकून मिलेगा,
ज़िन्दगी मुझे यूँ ही छलती रही!

तेरी गलियों में कुछ इस कदर सुकून मिला,
की हर मोड़ पे खुद-ब-खुद मैं मुड़ता रहा!

जब पूछा तेरे घर का रास्ता,
हर मोड़ पे तेरा एक आशिक़ खड़ा मिला!


Courtesy - श्वेतिमा, ज्योत्सना, हुमा , गुन्जन